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बाहर भी अँधेरा था और भीतर भी, अन्धकार अपने काले पंख फैलाये चारों ओर मंडरा रहा था। अपरिमित जन-समूह का अनन्त प्रवाह हाथों में मशालें लिये अँधेरी रात की छाती को ...